Friday, August 24, 2012


ॐ सांई राम
बाबा के शब्द सदैव संक्षिप्त, अर्थपूर्ण, गूढ़ और विदृतापूर्ण तथा समतोल रहते थे । वे सदा निश्चिंत और निर्भय रहते थे । उनका कथन था कि मैं
फकीर हूँ, न तो मेरे स्त्री ही है और न घर-द्वार ही । सब चिंताओं को त्याग कर, मैं एक ही स्थान पर रहता हूँ । फिर भी माया मुझे कष्ट पहुँचाया करती हैं । मैं स्वयं को तो भूल चुका हूँ, परन्तु माया को कदापि नहीं भूल सकता, क्योंकि वह मुझे अपने चक्र में फँसा लेती है । श्रीहरि की यह माया ब्रहादि को भी नहीं छोड़ती, फिर मुझ सरीखे फकीर का तो कहना
 ही क्या हैं । परन्तु जो हरि की शरण लेंगे, वे उनकी कृपा से मायाजाल से मुक्त हो जायेंगे । इस प्रकार बाबा ने माया की शक्ति का परिचय दिया । भगवान श्रीकृष्ण भागवत में उदृव से कहते कि सन्त मेरे ही जीवित स्वरुप हैं और बाबा का भी कहना यही था कि वे भाग्यशाली, जिनके समस्त पाप नष्ट हो गये हो, वे ही मेरी उपासना की ओर अग्रसर होते है, यदि तुम केवल साई साई का ही स्मरण करोगे तो मैं तुम्हें भवसागर से पार उतार दूँगा । इन शब्दों पर विश्वास करो, तुम्हें अवश्य लाभ होगा । मेरी पूजा के निमित्त कोई सामग्री या अष्टांग योग की भी आवश्यकता नहीं है । मैं तो भक्ति में ही निवास करता हूँ ।
 

Tuesday, August 14, 2012

कई बार निराश और हताश लोग साईं से यह ही शिकायत करते है, साईं हम कब से आपको पुकार रहे है, आप क्यों नहीं सुनते, पर क्या सचमुच साईं नहीं सुनते ?
सच तो यह है, हम ही साईं की आवाज सुन कर भी अनसुनी कर दे देते है. यदि कोई याचक (Beggar ) दानकर्ता से 

अपनी ही इच्छा पूर्ति की अपेक्षा रखे तो सदा इच्छा पूर्ति नहीं होती, यदि राजा सोने का हार दे, और हम जिद पर अड़ जाएँ की हमें चांदी या हीरे हा हार चाहिए, तो दानकर्ता क्या करेगा, यदि मंदिर में जाओ तो जो प्रसाद मिलता हो ग्रहण करना पड़ता है, यदि हलवा हो और हम खीर की उम्मीद में हलवा को मना कर दे, तो खीर कब मिलेगी यह तो भगवान ही जाने.

पर ऐसा नहीं है कि किसी कि इच्छा पूरी नहीं होती, अगर कोई याचक कहे मुझे सोना नहीं चांदी चाहए तो साईं राजा उसकी यह इच्छा जरूर पूरी करते है, पर पहले उसे इस काबिल बनाते है, उसके कर्मो को काटते है, जो उसके और उसकी इच्छा पूर्ति में बाधक है और इसमें समय लगता है, इसलिए sharadha और saburi के पथ पर चलना पड़ता है, पर क्योंकि वोह बहुत कठिन है इसलिए हम यह मान लेते है, साईं तो सुनते ही नहीं है, पर क्योंकि कोई और दरवाजा नहीं दिखता इसलिए साईं को छोड़ते भी नहीं .

सचमुच हम बहुत अहसान फरामोश है साईं, कभी इस बात का शुक्रिया नहीं करते कि हमें एक अच्छी जिन्दगी दी, पड़ने लिखने का मौका दिया, एक अच्छा परिवार दिया, जिन्दगी में हर मुसीबत में आगे बड कर हमें बचाया , इस पाप कि दुनिया से हमें निकलने और पावन करने के लिए स्वं पाप की उस आग को अपने ऊपर झेल लिया . पर एक इन्सान नहीं मिला तो साईं हमारी नहीं सुनते, हम अपने को आप का भक्त कहते है, पर हम बहुत कमजोर है साईं, हम आपको अपना जीवन क्या समर्पित करेंगे वोह तो हम किसी भी इन्सान को समर्पित कर देते है, शायद मन में यह ख्याल रखते हुए की हम आपके काबिल नहीं ..................पर आप कहते हो न एक बार मेरी शरण में तो आओ, तुमारी जिन्दगी मेरी responsibilty होगी, पर आयेंगे तब न ...................हमें इतनी शक्ति देना साईं की हम आपको सुन सके, हमारा अहम् और जिद आपकी आवाज हम तक पहुँचने ही नहीं देता, हम लाख कहें साईं हमारी नहीं सुनते पर सच तो यह है हम ही आपकी नहीं सुनते, ignore करते है उन सब संदेशो को जो अलग अलग माध्यम से आप हम तक पहुंचाते हो , हम इस काबिल तो नहीं, फिर भी हमें माफ़ कर देना, बच्चे तो गलती करते ही है न, पर साईं कभी बुरा नहीं मानते, सदा भला करते है, किसी को भी अपने दरवाजे से बाहर नहीं भेजते ......................... जीवन में जब कोई भी साथ देने वाला नहीं बचता, कोई मित्र, माता पिता पति या पत्नी बच्चे .............. आप तब भी साथ नहीं छोड़ते ..................यह साथ सदा बनाये रखना साईं, हम मुरख माया के प्रभाव में यह समझ नहीं पाते, पर आपका नाम ही इस जीवन की अग्नि में जलते हुए जीवन को शीतलता प्रदान करता है !

sai baba per kuch sabd

हे साई आँसू कमजोरी की नि‍शानी है माना मगर
गम जब हद से गुजरने लगे तो रोना आता है..

हे साई अँधेरों से लड़ने की ताकत है मुझमें मगर
दि‍न जब रात से लंबा लगे तो रोना आता है..

हे साई हर दरि‍या तैर कर नि‍कल जाएँगे ये गुरूर अच्‍छा है मगर
जि‍स्‍म जब रूह से हारने लगे तो रोना आता है..

हे साई अपनी कि‍स्‍मत पर इठलाना अच्‍छा लगता है मगर
दि‍माग जब दि‍ल से हारने लगे तो रोना आता है..

हे साई यादों की दस्‍तक से कौन खुद को बचा पाया है मगर
कभी फलक सि‍तारों से खाली लगे तो रोना आता है..

हे साई मेरे दोस्‍तों का जि‍गर बहुत बड़ा है मगर
खुद से माफी न मि‍ले तो रोना आता है..

हे साई इस दुनि‍या में समीर से हाथ मि‍लाने वाले बहुत हैं
कि‍सी से दि‍ल ना मि‍ले तो रोना आता है....

Monday, August 13, 2012

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ
♥:::♥*_/I\_*♥*_/I\_*♥*_/I\_*♥*_/I\_*♥*_/I\_*♥:::♥
ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ஜ۩۞۩ஜ OM SRI SATCHIDHANANDHA ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ SATHGURU ஜ۩۞۩ஜ ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜ SAINATH MAHARAAJ KI JAI ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜ || ॐ साईं नमो नमः || ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜ ||श्री साईं नमो नमः || ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜ ||जय जय साईं नमो नमः || ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜ ||सतगुरु साईं नमो नमः || ஜ۩۞۩ஜ
ஜ۩۞۩ஜ || ॐ श्री सतगुरु साईनाथ महाराज की जय || ஜ۩۞۩ஜ
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥


sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥
              बच्चा रोता देख कर
              माँ से रूका ना जाए,
            तू बच्चा बन कर देख
             ऱब दौड़ा चला आए,
        तू उसकी याद में आंसू बहा
         तो उससे रूका ना जाएगा,
           वो चाहे आए ना आए
        पर उसे भी चैन न आएगा
प्रीत लगी तेरे नाम की, एक बार आओं तो सांई....
sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥ sai ♥

Sunday, August 12, 2012

श्री साई बावनी (श्री शिर्डी साई बावनी) हिन्दी में

जय ईश्वर जय साई दयाल, तू ही जगत का पालनहार,
दत्त दिगंबर प्रभु अवतार, तेरे बस में सब संसार!
ब्रम्हाच्युत शंकर अवतार, शरनागत का प्राणाधार,
दर्शन देदो प्रभु मेरे, मिटा दो चौरासी फेरे !
कफनी तेरी एक साया, झोली काँधे लटकाया,
नीम तले तुम प्रकट हुए, फकीर बन के तुम आए !
कलयुग में अवतार लिया, पतित पावन तुमने किया,
शिरडी गाँव में वास किया, लोगो को मन लुभा लिया!
चिलम थी शोभा हाथों की, बंसी जैसे मोहन की,
दया भरी थी आंखों में, अमृतधारा बातों में!
धन्य द्वारका वो माई, समां गए जहाँ साई,
जल जाता है पाप वहाँ , बाबा की है धुनी जहाँ!
भुला भटका में अनजान, दो मुझको अपना वरदान,
करुना सिंधु प्रभु मेरे , लाखो बैठे दर पर तेरे!
जीवनदान श्यामा पाया, ज़हर सांप का उतराया!
प्रलयकाल को रोक लिया, भक्तों को भय मुक्त किया,
महामारी को बेनाम किया, शिर्डिपुरी को बचा लिया!
प्रणाम तुमको मेरे इश , चरणों में तेरे मेरा शीश,
मन को आस पुरी करो, भवसागर से पार करो!
भक्त भीमाजी था बीमार, कर बैठा था सौ उपचार,
धन्य साई की पवित्र उदी, मिटा गई उसकी शय व्याधि!
दिखलाया तुने विथल रूप, काकाजी को स्वयं स्वरूप,
दामु को संतान दिया, मन उसका संतुशत किया!
कृपाधिनी अब कृपा करो, दीन्दयालू दया करो,
तन मन धन अर्पण तुमको, दे दो सदगति प्रभु मुझको!
मेधा तुमको न जाना था, मुस्लिम तुमको माना था,
स्वयं तुम बन के शिवशंकर, बना दिया उसका किंकर!
रोशनाई की चिरागों में, तेल के बदले पानी से,
जिसने देखा आंखों हाल, हाल हुआ उसका बेहाल!
चाँद भाई था उलझन में, घोडे के कारण मन में,
साई ने की ऐसी कृपा , घोडा फिर से वह पा सका!
श्रद्धा सबुरी मन में रखों, साई साई नाम रटो ,
पुरी होगी मन की आस, कर लो साई का नित ध्यान !
जान का खतरा तत्याँ का , दान दिया अपनी आयु का,
ऋण बायजा का चुका दिया, तुमने साई कमाल किया!
पशुपक्षी पर तेरी लगन, प्यार में तुम थे उनके मगन,
सब पर तेरी रहम नज़र , लेते सब की ख़ुद ही ख़बर!
शरण में तेरे जो आया , तुमने उसको अपनाया,
दिए है तुमने ग्यारह वचन, भक्तो के प्रति लेकर आन!
कण-कण में तुम हो भगवान, तेरी लीला शक्ति महान,
कैसे करूँ तेरे गुणगान , बुद्धिहीन मैं हूँ नादान!
दीन्दयालू तुम हो हम सबके तुम हो दाता ,
कृपा करो अब साई मेरे , चरणों में ले ले अब तुम्हारे!
सुबह शाम साई का ध्यान , साई लीला के गुणगान,
दृढ भक्ति से जो गायेगा , परम पद को वह पायेगा!
हर दिन सुबह शाम को, गाए साई बवानी को,
साई देंगे उसका साथ , लेकर हाथ में हाथ!
अनुभव त्रिपती के यह बोल, शब्द बड़े है यह अनमोल,
यकीन जिसने मान लिया , जीवन उसने सफल किया !
साई शक्ति विराट स्वरूप , मन मोहक साई का रूप,
गौर से देखों तुम भाई, बोलो जय सदगुरु साई!

Wednesday, August 8, 2012

रंग अलग है रूप अलग है ,भाव सब में एक है
घाट अलग है ,लहरे अलग है ,जल तो सब में एक है ||
काले गोरे पीले तन में ,खून का रंग तो एक है ,
प्रेम की भाषा अलग अलग है ,प्रेम तो सब में एक है ||
पेड ,पोधे अलग अलग है ,तत्व तो सब में एक है

मताए सबकी अलग अलग है ,ममता तो सब एक है ||
गाव ,शहर ,देश सबके अलग अलग है ,पर घरती तो एक है ,
गाय अलग अलग रंगों की है ,दूध का रंग तो एक है ||
खाना सबका अलग अलग है ,पर भूख सबकी है ,
वेशभूषा सबकी अलग अलग है ,जीवन सबका एक है ||
सोच सबकी अलग अलग है ,पर ज्ञान सबमे एक है ,
सब करते साईं का शुकराना अलग अलग तरीके से,
जिसने ये समझाया की "सबका मालिक एक है"



कोरे पन्नों पर दिन रात हम तो लिखते हैं
लोग कहते हैं कि आशिकों से हम दिखते हैं
हम क्या करें साईं अब तुम ही कह दो
दिल तुम्हें याद कर के ही सुकूं पाता है

नज़र उठाते हैं तो सामने तुम होते हो
नज़र झुकाते हैं तो दिल में उतर आते हो
तुम्हीं कहो नज़रों को हम कहां फेरें
हर तरफ तेरा ही दीदार हुआ जाता है..

!! ..जय साईं राम.. !!



श्री शिर्डी साईं बाबा

कई बार निराश और हताश लोग साईं से यह ही शिकायत करते है, साईं हम कब से आपको पुकार रहे है, आप क्यों नहीं सुनते, पर क्या सचमुच साईं नहीं सुनते ?
सच तो यह है, हम ही साईं की आवाज सुन कर भी अनसुनी कर दे देते है. यदि कोई याचक (Beggar ) दानकर्ता से अपनी ही इच्छा पूर्ति की अपेक्षा रखे तो सदा इच्छा पूर्ति नहीं होती, यदि राजा सोने का हार दे, और हम जिद पर अड़ जाएँ की हमें चांदी या हीरे हा हार चाहिए, तो दानकर्ता क्या करेगा, यदि मंदिर में जाओ तो जो प्रसाद मिलता हो ग्रहण करना पड़ता है, यदि हलवा हो और हम खीर की उम्मीद में हलवा को मना कर दे, तो खीर कब मिलेगी यह तो भगवान ही जाने.

पर ऐसा नहीं है कि किसी कि इच्छा पूरी नहीं होती, अगर कोई याचक कहे मुझे सोना नहीं चांदी चाहए तो साईं राजा उसकी यह इच्छा जरूर पूरी करते है, पर पहले उसे इस काबिल बनाते है, उसके कर्मो को काटते है, जो उसके और उसकी इच्छा पूर्ति में बाधक है और इसमें समय लगता है, इसलिए sharadha और saburi के पथ पर चलना पड़ता है, पर क्योंकि वोह बहुत कठिन है इसलिए हम यह मान लेते है, साईं तो सुनते ही नहीं है, पर क्यों

कि कोई और दरवाजा नहीं दिखता इसलिए साईं को छोड़ते भी नहीं .

सचमुच हम बहुत अहसान फरामोश है साईं, कभी इस बात का शुक्रिया नहीं करते कि हमें एक अच्छी जिन्दगी दी, पड़ने लिखने का मौका दिया, एक अच्छा परिवार दिया, जिन्दगी में हर मुसीबत में आगे बड कर हमें बचाया , इस पाप कि दुनिया से हमें निकलने और पावन करने के लिए स्वं पाप की उस आग को अपने ऊपर झेल लिया . पर एक इन्सान नहीं मिला तो साईं हमारी नहीं सुनते, हम अपने को आप का भक्त कहते है, पर हम बहुत कमजोर है साईं, हम आपको अपना जीवन क्या समर्पित करेंगे वोह तो हम किसी भी इन्सान को समर्पित कर देते है, शायद मन में यह ख्याल रखते हुए की हम आपके काबिल नहीं ..................पर आप कहते हो न एक बार मेरी शरण में तो आओ, तुमारी जिन्दगी मेरी responsibilty होगी, पर आयेंगे तब न ...................हमें इतनी शक्ति देना साईं की हम आपको सुन सके, हमारा अहम् और जिद आपकी आवाज हम तक पहुँचने ही नहीं देता, हम लाख कहें साईं हमारी नहीं सुनते पर सच तो यह है हम ही आपकी नहीं सुनते, ignore करते है उन सब संदेशो को जो अलग अलग माध्यम से आप हम तक पहुंचाते हो , हम इस काबिल तो नहीं, फिर भी हमें माफ़ कर देना, बच्चे तो गलती करते ही है न, पर साईं कभी बुरा नहीं मानते, सदा भला करते है, किसी को भी अपने दरवाजे से बाहर नहीं भेजते ......................... जीवन में जब कोई भी साथ देने वाला नहीं बचता, कोई मित्र, माता पिता पति या पत्नी बच्चे .............. आप तब भी साथ नहीं छोड़ते ..................यह साथ सदा बनाये रखना साईं, हम मुरख माया के प्रभाव में यह समझ नहीं पाते, पर आपका नाम ही इस जीवन की अग्नि में जलते हुए जीवन को शीतलता प्रदान करता है !



श्री साईं सत्चरित्र

भिक्षावृत्ति की आवश्यकता----------------------------अब हम भिक्षावृत्ति के प्रश्न पर विचार करेंगें । संभव है, कुछ लोगों के मन में सन्देह उत्पन्न हो कि जब बाबा इतने श्रेष्ठ पुरुष थे तो फिर उन्होंने आजीवन भिक्षावृत्ति पर ही क्यों निर्वाह किया ।
इस प्रश्न को दो दृष्टिकोण समक्ष रख कर हल किया जा सकता हैं ।पहला दृष्टिकोण – भिक्षावृत्ति पर निर्वाह करने का कौन अधिकारी है ।------------------शास्त्रानुसार वे व्यक्ति, जिन्होंने तीन मुख्य आसक्तियों –1. कामिनी2. कांचन और3. कीर्ति का त्याग कर, आसक्ति-मुक्त हो सन्यास ग्रहण कर लिया हो– वे ही भिक्षावृत्ति के उपयुक्त अधिकारी है, क्योंकि वे अपने गृह में भोजन तैयार कराने का प्रबन्ध नहीं कर सकते । अतः उन्हें भोजन कराने का भार गृहस्थों पर ही है । श्री साईबाबा न तो गृहस्थ थे और न वानप्रस्थी । वे तो बालब्रहृमचारी थे । उनकी यह दृढ़ भावना थी कि विश्व ही मेरा गृह है । वे तो स्वया ही भगवान् वासुदेव, विश्वपालनकर्ता तथा परब्रहमा थे । अतः वे भिक्षा-उपार्जन के पूर्ण अधिकारी थे ।
दूसरा दृष्टिकोण-----------------पंचसूना – (पाँच पाप और उनका प्रायश्चित) – सब को यह ज्ञात है कि भोजन सामग्री या रसोई बनाने के लिये गृहस्थाश्रमियों को पाँच प्रकार की क्रयाएँ करनी पड़ती है –1. कंडणी (पीसना)2. पेषणी (दलना)3. उदकुंभी (बर्तन मलना)4. मार्जनी (माँजना और धोना)5. चूली (चूल्हा सुलगाना)इन क्रियाओं के परिणामस्वरुप अनेक कीटाणुओं और जीवों का नाश होता है और इस प्रकार गृहस्थाश्रमियों को पाप लगता है । इन पापों के प्रायश्चित स्वरुप शास्त्रों ने पाँच प्रकार के याग (यज्ञ) करने की आज्ञा दी है, अर्थात्1. ब्रहमयज्ञ अर्थात् वेदाध्ययन - ब्रहम को अर्पण करना या वेद का अछ्ययन करना2. पितृयज्ञ – पूर्वजों को दान ।3. देवयज्ञ – देवताओं को बलि ।4. भूतयज्ञ – प्राणियों को दान ।5. मनुष्य (अतिथि) यज्ञ – मनुष्यों (अतिथियों) को दान ।यदि ये कर्म विधिपूर्वक शास्त्रानुसार किये जायें तो चित्त शुदृ होकर ज्ञान और आत्मानुभूति की प्राप्ति सुलभ हो जाती हैं । बाबा इधर उधर जाकर गृहस्थाश्रमियों को इस पवित्र कर्तव्य की स्मृति दिलाते रहते थे और वे लोग अत्यन्त भाग्यशाली थे, जिन्हें घर बैठे ही बाबा से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिल जाता था ।


Click here for Myspace Layouts

Total Pageviews